“काल के कोमल हाथ”
“काल के कोमल हाथ”
अपने प्रिय नेता को देखने जन सैलाव उमड़ पड़ा था। जनता को सिर्फ आधा घंटा ही इंतजार करना पड़ा। नेता जी सपरिवार अपने छुटभैयों के साथ स्टेज पर उपस्थित थे। नेता जी ने अपने सद्विचारों का पिटारा खोलना आरंभ किया ” आजकल हर राजनीतिक दल जातिगत राजनीति करता है। भाईयों! मुझे नफरत है ऐसी राजनीति से, मेरे लिए हिंदु-मुस्लिम, ऊंच-नीच जाति का होने से पहले वह एक इंसान है…….। जनता के बीच खड़े एक चमचे ने ताली बजा विचारों का स्वागत किया तो पूरे पंडाल में तालियों के साथ जिंदाबाद के नारे गूँज उठे।
नेता जी स्टेज़ से उतर जनता के बीच आ गये, एक नवयुवक के कांधे पर हाथ रख कुछ बात की , कांधे पर हाथ रखे ही मन्दिर तक गये, हाथ जोड़ प्रार्थना की।धर्म निरपेक्ष नेता जी की जय जयकार होने लगी।
लोग प्रशंसा करते न अघाते थे—” बड़े ही नेक दिल हैं,देश और दलितों का ये ही उद्धार कर सकते हैं।”
चुनाव में नेता जी भारी बहुमत से जीत कर संसद में आ गए।एक दिन अपनी इकलौती पुत्री को एक नवयुवक के साथ देखा। आने पर बेटी को अपने कक्ष में बुलाया, पास बिठा प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए युवक के बारे में पूछा। ” पापा ये सुमित है।” बेटी बोली
” कौन सुमित? ” ” वही जिस के साथ आप दलितों की बस्ती में मन्दिर गये थे, बड़ा इंटैलीजैंट है पापा, इसका एक बड़ी कंपनी में सलैक्शन भी हो गया है, हमें बहुत पसंद है।” ओहहहहह…..वो… ठीक है बेटा! अब जाओ अपने रूम में जाकर सो जाओ, सुबह बात करते हैं।
अगले दिन नेता जी के बंगले पर भीड़ जमा थी। लोग चर्चा कर रहे थे। ” कुछ बीमार थी के ?” ” अरे कड़ै बमार थी, काल ताईं तै ठीक ठाक थी, रात मैंये पेट में दरद उठा बतावैं अर्… जिब लग ड़ागदर आवै वा चाल बसी, ।”शोक सभा में नेता जी गर्दन झुकाए बेटी के ग़म में नम आँखों से शोक विव्हल बैठे थे।” ओहहहहह… या राम नै बी नेक इंसान के गेलां घना बुरा करा।”
——राजश्री——