काल्पनिक राम का दर्शन
व्यंग्य
काल्पनिक राम का दर्शन
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कल शाम एक अजूबा हो गया
जिसे मैंने अपनी आंखों से देखा।
मैं मंदिर में राम जी के दर्शन को गया था
तभी लावलश्कर और तमाम तामझाम के साथ
एक बड़े नेता जी ने मंदिर में प्रवेश किया,
उस पहले हम जैसे आम लोगों को
मंदिर से बाहर कर दिया गया।
गुस्सा तो बहुत आया पर विवशतावश
मंदिर के बाहर भीड़ बनकर खड़ा हो गया।
तभी मंदिर में कोहराम मच गया
जो आज तक नहीं हुआ भला आज कैसे हो गया,
होना तो नहीं चाहिए था पर हो गया,
रामजी अपने आसन से गायब हो गए,
तभी मुझे अपने कंधे पर कुछ भार सा लगा
मुझे लगा जैसे किसी ने आराम से
मेरे कंधे पर अपना हाथ सा रखा।
मैंने दायीं ओर अपना सिर घुमाया
और जो देखा उससे तो मैं बहुत चकराया।
राम जी आसन छोड़ मेरे पास खड़े थे
मैं चौंक गया पर कुछ बोलता उससे पहले
उन्होंने मुझे चुप रहने का इशारा किया,
फिलहाल तो मैं चुप रह गया,
फिर रामजी के कान में फुसफुसाया
प्रभु! ऐसा भी होता है?
राम जी ने भी फुसफुसाते हुए बताया
वत्स! ऐसा ही होता है
जिसकी जैसी नियत होती है
उसको दर्शन भी वैसे मिलता है।
नेताजी मेरा दर्शन करने नहीं तुम्हें भरमाने आये हैं
जनता को दिखाने आये हैं,
मेरे बड़े भक्त हैं वो ये बताने आये हैं।
इस बहाने वो वोटों की फसल काटने आये हैं
मीडिया की सुर्खियां बनने आयें हैं
उनके लिए तो जब मैं काल्पनिक हूँ
तो तुम ही बताओ वो और क्या करने आये हैं?
या कल्पनाओं का भूत देखने आये हैं?
वे मुझे काल्पनिक कहते रहे
तो हमने भी उन्हें उनकी कल्पना के दर्शन कराए हैं।
थोड़ी देर में नेता जी चुपचाप वापस चले गए
और राम जी फिर अपने आसन पर
विराजमान हो भक्तों को नजर आने लगे,
जब मैं फिर मंदिर के भीतर गया
और राम जी से मेरी नज़रें मिली
तो इशारों में इतना एहसास जरुर करा दिया
कि काल्पनिक राम का दर्शन
सिर्फ कल्पनाओं में ही होता है।
सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश