काले काले बादल आयें
घटा मेघ नभ में हैं छाये
काले-काले बादल आये
बिजली चमकी
बादल गरज़ा
आँधी आई
पानी बरसा
भींग तरुवर ख़ुशी मनायें
काले- काले बादल आये
छपक छपक के
दौड़ लगाते
गोलू मोलू
ख़ूब नहाते
दृश्य सभी के मन को भाये
काले – काले बादल आये
गगन हंसे
धरती मुस्काये
किसना खेत में
कजरी गाये
लेव लगे तो फ़सल उगाये
काले – काले बादल आये
मन मेरा भी
चाह रहा है
कितना भींगू
थाह रहा है
बचपन में फिर से खो जायें
काले – काले बादल आये
चहुंओर फैली
हरियाली
भरे सरोवर
जो थे ख़ाली
काश, कि कागज़ नाव बनायें
काले – काले बादल आये
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)