कालेधन के नाम कुछ दोहे
© बसंत कुमार शर्मा
भैंसें काली हैं मगर, देतीं दूध सफ़ेद
जाति धर्म या क्षेत्र का, करें न कोई भेद
कालेधन पर हो रहा, जब से यहाँ विचार
वहाँ भैंस ने गाँव में, छोड़ दिया आहार
जब हजार के नोट पर, पड़ी जोर से चोट
संसद में चलने लगे, फटे पुराने नोट
ख़बरों में है आजकल, नोटों का व्यापार
देश गुलाबी हो गया, मस्त हुई सरकार
छुटभैये नेता सभी, रोज जा रहे बैंक
छपकर के अखबार में, बढ़ा रहे हैं रैंक
नहीं बनाते बिल कभी, और न भरते टैक्स
वे व्यापारी अब यहाँ, कैसे करें रिलेक्स
काले धन के जोर पर, खूब पसारे पैर
अब चादर छोटी हुई, करो ठण्ड में सैर
माल हड़प कर और का, भरी तिजोरी खूब
हलुआ पूरी छोड़िये, बची नहीं अब दूब
कैश-लैस व्यापार में, कुछ तो दम है यार
छुप न सकेगा अब यहाँ, कोई भी व्यवहार
रोज हो रही धरपकड़, फँसे हुए हैं चोर
जनता तो रस ले रही, नेता करते शोर