-: काली रात :-
एक रात भयानक काली होगी
फिर ना कभी दिवाली होगी
जीवन का में मरण करूंगा
मस्तक पर ना लाली होगी
व्रत करो उपवास करो
ब्रह्मा भी बचा ना पाएंगे
मेरे क्रोध की ज्वाला में
सर्वत्र भस्म हो जाएंगे
ओ अनुप्रिया के प्रियवर सुन
अब महा भयंकर रण होगा
मृत्यु चयन करेगी तेरा
या फिर मेरा शव होगा
-पर्वत सिंह राजपूत (अधिराज )
काव्यखंड ‘अनुप्रिया ‘