काली जुल्फ़े समझा जाओ
काली जुल्फ़े समझा जाओ
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बहक गया हूँ जीवन पथ पर,
दो पल आकर समझा जाओ।
घर-आंगन भी तो है मरझाया,
बगिया प्यारी महका जाओ।
गोरे – गोरे कोमल हाथों से,
काली जुल्फें सहला जाओ।
राही हूँ मैं तेरे प्रेम-पथ का,
बाँहों में ले कर राह पाओ।
गोपी हो ख्यालों-ख्वाबों की,
प्यारे रंग सुनहरे चढ़ा जाओ।
दिन-रात रोऊँ विरही मन से,
प्रेम-वर्षा तुम बरसा जाओ।
मनसीरत मन खोया-खोया,
गहरी निद्रा से जगा जाओ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)