काली घटा घिरी मतवाली
काली घटा घिरी मतवाली।
धरती ने ओढ़ी हरियाली
अमवा पर डाले हैं झूले
झूम रही है डाली डाली
आओ मिलकर झूला झूलें
प्यार करें नफरत को भूलें
ऊँचे ऊँचे पेंग बढ़ाकर
बीती यादों को भी छू लें
कूक रही कोयलिया काली
काली घटा घिरी मतवाली।
कागज़ की ही नाव बनायें
आँगन में उनको तैरायें
उनके पीछे दौड़ दौड़ कर
भीग भीग कर शोर मचायें
बजा बजा कर हम सब ताली
काली घटा घिरी मतवाली।
प्यारे प्यारे दिन सावन के
खेल पुराने ये बचपन के
इन यादों के फूल सजे हैं
गुलदस्ते में अपने मन के
सींच रहे हैं बनकर माली
काली घटा घिरी मतवाली।
08-08-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद