बिकने लगा ज़मीर यहां पर
कागज के टुकड़े के बदले,
मिलता हवा और जल है।
अब तो सोचो कैसा मानव
आने को आतुर कल है।
बिकने लगा जमीर यहां पर,
और बिका नाहक पल है।
अब तो सोचो कैसा मानव ,
आने को आतुर कल है।
व्यापारों के सागर में हां
गोता अगर लगाओ तो
क्या तुम बेचोगे प्रीत यहां ?
गर अच्छी कीमत पाओ तो!
देखो मैं हूं कितना अल्हड़
नाहक प्रश्न किया तुमसे,
हां हां मुझे खबर पुख्ता है,
तुम भी मुहर लगाओ तो।
______दीपक झा रुद्रा ❤️?