काला पानी
आज़ादी का धान करूँ तो, केवल दिखती एक कहानी !
केवल सम्मुख शोणित की, वर्षा केवल दिखता काला पानी !!
केवल वीरों की हुकार, केवल भारत की पुकार !
केवल रण में चलती थी, लोहित को दुधार !!
जिसके तन में तेज भरा वो, कभी नहीं निर्बल होगा वो !
केवल समर में चलने को, साहस का संबल होगा !!
जो नहीं कभी मृत्यु से डरकर, प्राण बचाया करता है !
पत्थर की प्रतिमा पुरूष में, प्राण फूंक कर भरता है !!
केवल माँ पर चढ़ा लाहु को, माँ का कर्ज उतारूंगा !
मरकर भी सदा जगत में कालजयी कह लाऊंगा !!
निज शोणित की धार सदा, मृत्यु के पास बहने दूँगा !
चल रहे हैं खण्ड के वारधरा पर, वो अपने पर चलने दूँगा !!
लड़ रहे हैं वीर निज धर्मभूमि पर, आज़ादी लाने को !
कोटि कंठ से एक स्वरों में गौरव गान सुनाने को !!
बलिवेदी पर चढ़ा शीश में धरती के कष्ट हरूँगा !
बून्द-बून्द अपने शोणित की न्यौछावर कर दूंगा !!
निज के लिए तो क्या जीना, में धरती के लिए जिऊँगा !
काल पुरूष के हाथों से ही काला नीर पीऊँगा !!
अमर नहीं होता नर जग में मरना उसे पड़ता हैं !
बेझिझक धर्म के लिए समर में लड़ना उसे पड़ता है !!
शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर-343032
(कवि, लेखक और विश्लेषक)
मोबाइल नम्बर-8239360667