कालजयी बन जाओ
कालजयी बन जाओ: एक यथार्थ परक मुक्त छन्द कविता-समीक्षार्थ:
अभी -अभी स्वानुभव पर आधारित,
विशिष्टतया नकारात्मक सोच वालों के नाम पाती.
विमर्श के लिए”
000
प्रतिक्रिया से बचने का डर
प्रति- प्रतिक्रिया की बुरी आदत
प्रतिक्रिया पर पाबंदी लगा देना
प्रश्न खड़े होते हैं-इनसे
किसी भी ऐसी क्रिति पर
क्रितिकार की सम्मति पर
क्रिति की मौलिकता पर
कथ्य-शिल्प -बुनावट पर
क्रितिकार की हर हरकत पर.
संभव है, ऐसे में, बहुत कुछ:
क्रिति को असली नहीं समझ
पढ़े ही नहीं उसे पाठक
क्रितिकार का नाम सामने आते ही
पढ़े बिना ही -बेकार मान ले
विमर्श में भड़क जाय जो
झगड़ जाय
सामान्य-सद्भाविक टिप्पणी पर
बिगाड़ ले सम्बन्ध
आलोचकों से
समीक्षकों से
पाठकों से
ख़ुद की कमियां उजागर होने पर
वर्षों से अर्जित.
नहीं हैं वे क्रितिकार-कलाकार
क्षरण जारी है उनका
क्रितिकार -कलाकार
ऐडमिन रूप में
सीखने -सिखाने
प्रतिक्रिया -आभार से परहेज
किसी से
सम्वाद करने में
ख़ुद को
छोटा समझने की भूल
अपने श्रिजन पर
इस्लाह को
अपमानित होना
समझने की आत्मघाती चूक
सामाजिक प्रतिष्ठामें -आलोचना को
मान लेना गिरावट
यथास्थिति वादी होना
मरण की ओर मोड़ देना है
ख़ुद के अंदर की प्रतिभा को
मत रोको अपना विकास सर्जको!
असली धारा में आओ
सीखो-सिखाओ
कद को नहीं घटाओ
कालजयी बन जाओ.
@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/साहित्यकार
COPYRIGHT RESERVED