कालजयी रचनाकार
सभ्यता और संस्कृति के
पांच हजार साल के इतिहास में
तुमने कितनी रचनाएं की
अपने देश और समाज के
जलते हुए प्रश्नों पर?
वो शास्त्रीय, कालजयी और
सम्भ्रांत कृतियां
हमारे किस काम की
जो तत्कालीन व्यवस्था के
नग्न यथार्थ से
कतराकर निकल जाती हैं?
सौंदर्य, प्रेम और धर्म को लेकर तो
तुमने कितनी कलाकृतियां दीं
लेकिन शूद्रों के कान में
शीशा पिघलाए जाने और
विधवा स्त्रियों को
जीवित जलाए जाने के विरोध में
तुमने कहीं एक भी शब्द नहीं लिखा!
जाति,वर्ण और लिंग के नाम पर
कितने तो अनर्थ हुए चारों ओर!
लेकिन ऐसी घटनाओं पर
कभी तुम्हारा ध्यान क्यों नहीं गया?
राजा-महाराजाओं और
देवी-देवताओं की
झूठी प्रशंसा करने के लिए तो
तुम्हारे पास समय ही समय था
लेकिन मज़दूरों और किसानों की
सच्चाई कहने के लिए
कभी तुम्हें अवकाश ही नहीं मिला!
महान बनने के प्रयत्न में
तुम मनुष्य भी नहीं रहे।
तुम्हारी संवेदना कहां मर गई थी
जब समाज के इतने बड़े वर्ग को
हमेशा-हमेशा के लिए
शिक्षा, संपत्ति और सत्ता से
वंचित करने का
षड्यंत्र किया जा रहा था?
उत्पीड़न, शोषण और अपमान की
कितनी घटनाएं होती रहीं
तुम्हारे आस-पास
लेकिन तुम लगे रहे
खोखले शब्द-जाल बुनने में!
मुझे समझ में नहीं आता कि
आख़िर तुम इतने
हृदय हीन कैसे हो सकते हो?
Shekhar Chandra Mitra
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