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25 Jun 2022 · 1 min read

कालखंड में विद्यमान है

बीज निकलकर पौधे बनते
पौधे बन जाते हैं पेड़
सहज प्रक्रिया चलती रहती
परिवर्तन की साँझ-सवेर.
सूरज ढलता शाम है आती
रात गुजरती होते भोर
नई सुबह उत्साह जगाती
विहग बालिके करती शोर.
झर जाते हैं जीर्ण सुमन-दल
नये कुसुम खिल उठते हैं
दबे-छिपे संकेत ये कहते
कर्म से ही जीवन चलते हैं.
संघर्षरत है सारी दुनिया
असुरता के निर्मम घातों से
मृत्यु विचरती रहती पल-पल
क्रूर पाशविकता के हाथों से.
होता है विदा जगत से
मूढ़-आतंकी द्विज-विद्वान
कोई दग्ध करता भूतल को
कोई बनता देश की शान.
कालखंड में विद्यमान है
सबका व्यापक लेखा-जोखा
अजर-अमर नहीं हुआ है
मानव समाज की कोई ढांचा.
पहचाने निज कर्म को जाने
परिवर्तन अब दूर नहीं है
विषम-वेला का होगा अंत
नव सृजन अब दूर नहीं है.
भारती दास ✍️

Language: Hindi
1 Like · 327 Views
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