कार्तिक पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा
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चांदी जैसे चमके रात चांदनी,
और न तुम मुझको तरसाओ।
मिलने की है ललक अब तुमसे,
और मेरे करीब तुम आ जाओ।।
ठिठुर रही हूं मैं शरद ऋतु में,
कैसे ठंडी राते मैं अब काटू।
आ जाओ तुम सजन मेरे,
इस ठंड को तुमसे मै बाटू।।
एक तरफ तन्हाई डसती,
दूजी तरफ ये ठंडी रात।
कैसे बिताऊ मै अब इसको,
कांप रहा है ये मेरा गात।।
कार्तिक मास की ये पूर्णिमा,
अगर साथ तुम्हारा ये होता।
गर्म लगती ये ठंडी पूर्णिमा भी,
अगर विश्राम तुम्हारे साथ होता।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम