कारगिल विजय पताका
विषय-” कारगिल विजय पताका”
विधा- कविता
कारगिल की विजय पताका, गाथा अमर जवानों की।
शत्-शत् नमन शूरवीरों को, मातृ ऋणी मस्तानों की ।।
याद करूँ जब कुर्बानी को, गुज़रा वक्त रुलाता है।
कफ़न ओढ़ चिर निद्रा सोए, सोच हृदय भर आता है।।
ठंडी बर्फ़ीली घाटी में, घुसपैठी छुप कर आया।
नज़र पड़ी आतंकी पर जब, उसे मार फेंक गिराया।।
दुर्गम चोटी चढ़ फौज़ों ने, उन पर धावा बोला था।
वीरों ने चौकन्ना होकर, तुरंत मोर्चा खोला था।।
मोह त्याग कर वनिता-सुत का, फ़ौज़ी लड़ने आए थे।
देशभक्त माताओं ने हँस, अपने लाल गँवाए थे।।
सींच लहू से अपनी भू को, माटी तिलक लगाया था।
माँग रक्त से भरी धरा की, माँ का कर्ज़ चुकाया था।।
विधवा दुल्हन की चूड़ी ने, सहा वार संहारों का।
मोल नहीं अब इस जीवन में, साजन के त्योहारों का।।
थाल सजाए राखी लेकर, बहना मातम करती है।
सूनी गोदी दर्द छिपाकर, माता पीड़ा हरती है।।
तीर्थ बने उन वीरों के शव, अंबर रुदन सुनाता है।
धूल चाटता बैरी पदतल, घन गर्जन रुक जाता है।।
वीर शहादत दे प्राणों की, नव इतिहास रचाता है।
अमर ज्योति के दीपक सम्मुख, सूर्य नहीं टिक पाता है।।
स्वरचित/मौलिक
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
मैं डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” यह प्रमाणित करती हूँ कि” कारगिल विजय पताका” कविता मेरा स्वरचित मौलिक सृजन है। इसके लिए मैं हर तरह से प्रतिबद्ध हूँ।