काम चले ना
अब सोने से काम चले ना।
फिर जगने से बात बने ना।।
अब चुप्पी से काम चले ना।
फिर बड़बोले से बात बने ना।।
अब हसने से रार टले ना।
फिर रोने से काज चले ना।।
अब मुहँ बन्दी से जीत मिले ना।
फिर बक-बक से चमन खिले ना।।
अब शान्ति से मान बचे ना।
फिर लडने से स्वाभिमान बचे ना।।
दोषारोपण खूब किया हैं।
यू ही देश को क्षीण किया हैं।।
माँ की गोद से काम चले ना।
अब खुद को ही जंग हैं लडनी।।
माँ की गोद भी एक उम्र तक।
उस माँ की अब रक्षा हैं करनी।।
आज बने हैं मूर्ख हिन्दू।
कभी ज्ञान के थे ये सिन्धु।।
बने हुए हैं मूर्ख हिन्दू।
कभी जगत पर काबिज हिन्दू।।
कभी किसान बने ये बन्धु।
कभी बताते खुद को हिन्दू।।
कभी भाई और कभी हैं चारा।
UCC पर एक ही नारा।।
बोल रहे कुछ खालिस्तानी।
गरीब किसान जो कहते खुद को।।
डोल रहे Range Rover मे।
माग रहे हैं देश अलग वो।।
देश तोड़ना चाहे अपना।
कैसे हैं वो गुरू के बन्धु।।
अपने घर के बच्चे देकर।
जब जाके सरदार बनाए।।
गुरूओ की सीख नही थी ऐसी।
जैसा अपना ये रूप दिखाए।।