काम कब आया
कोई कभी काम कब आया
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कोई कभी काम कब आया,
जोगी जहाँ जान जब आया।
तन – मन तमाशा बना जग में,
वो बन मदारी न तब आया।
फंसा रहा मन अकेला सा,
बन कर यहाँ यार रब आया।
जिनको नहीं जानती पवनें,
जग में नजर खूब दब आया।
जो भी मिला यार मनसीरत,
सूखा लिया लाल लब आया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)