काम आया न छाता
**** काम आया न छाता ****
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पकौड़ों का भी धंधा हुआ मंदा,
महंगा हुआ तेल क्या करे बंदा।
चाय में घटा दूध बढ़ गया पानी,
दूध की दर ने याद दिलाई नानी।
महंगाई की मार खा रही रसोई,
गैस सिलेंडर दर सुन गृहणी रोई।
महंगाई विरोध में जो होते थे नंगे,
वो अब करवाते घोटाले और पंगे।
राजनीतिक खेल बहुत होता गंदा,
आमजन चढ़ गया है आज फंदा।
भाषणबाजी में ही होती तरक्की,
रही नहीं नौकरी न कच्ची पक्की।
मनसीरत बातों में रहता फंसाता,
बरसी न बूँद काम आया न छाता।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)