कामना के प्रिज़्म
कामना के प्रिज्म इन्द्रधनुष नहीं बना करते,
नाजुक तंतुओं से सपने नहीं संजोया करते।
नियति घुमाती है अपने ही केन्द्र बिन्दू में,
लौटना ही होता है फिर अपनी दुनिया में।
जद्दोजहद से भाग्य संचालित नहीं होते हैं,
वेदना विह्वल हो ख़्वाब तिरोहित ही होते हैं।
भावोन्माद में आनंद अपरिभाषित होता है,
आत्म मंथन से ही हृदय स्पंदित होता है।
अतीत आलोकित हो जाता है गवाक्षों से,
ख़ुशी धाराशायी होती है अवसरवादिता से।
होती हैं आखें अश्रुपूरित सजल से नयन,
हो जाता है जब वियोगावस्था का चयन।
हवा के पंखों पर सवार सफ़र संभव नहीं,
उत्सुकता से प्यार लुप्त हो जाता है कहीं।
डॉ दवीना अमर ठकराल’ देविका’