कामचोर (नील पदम् के दोहे)
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कामचोर देखे सदा, कहाँ बहाने चार,
झूठे दर्द, झूठी दलीलें, हैं उसके औजार ।
कामचोर ने है किये, आजीवन येही काम,
हर स्थिति को कोसना, खाना, सोना, आराम ।
कामचोर की मनः स्थिति, विकट अनोखी होय,
तरु पीपल उगा दीवार पर, ये कहे छाया होय ।
कामचोर का साथ यदि, कभी तुम्हें मिल जाय,
नाश करे तासे पहले, भागो सिर रख कर पाय।
कामचोर की आँख में, होत सुअर का बाल,
देख अंदेशा काज का, लेत बहाना ढ़ाल ।
कामचोर को टोंकते, निकल जायेगा दम,
उसका काम करे कोई और, वह बैठे हो बेशर्म।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नीलपदम्”