काफी है
भरी महफिल में तेरा, इशारा काफी है
तेरे बिन जीवन का, गुजारा काफी है
बचा है मेरे पास बस इतना
मेरे जीवन में तेरी यादों का, सहारा काफी है।
हर रोज मरम्मत करता हु, अपने दिल को
टालते रहता हु मै, हर मुश्किल को
संवारना होता, तो सवर गए होते
अब बचा खुचा जो भी है, गवारा काफी है ।
नसीब में लिखा है जो, उसे कौन टाल सकता
जीवन में जीत हो, तो कौन हार सकता
दोष तो अंत में कर्म का देते है
अब जो कुछ भी है, हमारा काफी है।
जुदा किस किस से, होना पड़ेगा मुझे
मै नही जानता, क्या क्या और ढोना पड़ेगा मुझे
सब कुछ तो मेरे बस में नहीं
पर देखने वालो के लिय, ये नजारा काफी है।
✍️ बसंत भगवान राय