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20 Jul 2017 · 1 min read

काफी नहीं ?

बैठे रहते है जब हम
खोये हुए सपनो की खोज मैं,
आसमान से टपकते
पानी से संवेदना हथेली पर
शायद फिर से संजोले
पर ..
ये जो समय है वो
दूर से चमककर
टूटते हुए तारे की तरहा
बिखर बिखर जाता है,
और आंसुओ की सतह पर
सदीओ तक चमकता रहता है,
फिर भी ज़िंदा हूँ
काफी नहीं ?

-मनीषा जोबन देसाई

Language: Hindi
2 Likes · 514 Views
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