कान्ह राधा
कान्हा ने चाहा राधा को शिद्धत से
राधा ने चाहा कान्हा को मुद्धत से
पर सम्बन्ध परिणति विवाह में नहीं
प्रेम कहानी विरह कहानी बन गयी
प्रेम दोनों का रहा बहुत चंचल निर्मल
पर साबित हुआ बहुत जटिल निर्मम
देख घनानंद पकड़े कृष्ण भक्ति राह
सुन कविवृन्दों को रहे विरह की चाह
कृष्ण की समझे जाए राधा परछाईं
उस दिल में जा कैसे रूक्मणी समाई
फिर भी कृष्ण के रंग रंगी है प्रिय राधे
बिन जिसके वृषभानु सुता कुछ न छाजे