कान्हा
कान्हा तुम हर साल
पुराने रूप में जन्म लेते हो
अपना दसवाँ अवतार लेना
हर बार भूल जाते हो ?
यहाँ इतनी त्रासदी और पीड़ा है
सबके अंदर नफरत का कीड़ा है ,
तुम आओ तो…देखना
नफरत उसी क्षण खत्म हो जायेगी
फिर से तुम्हारी बाँसुरी की धुन पर
नदियाँँ तुम्हें सुनने को थम जायेगीं ,
फिर से वृंदावन सजेगा
गोकुल दही – दूध से भरेगा
फिर से रचेगा रास
तुम्हारा गोपीयों के साथ ,
आते क्यों नही हो तुम ?
क्या कलियुग से तुम्हें भी भय है ?
या दसवाँ अवतार लेने में कोई संशय है ?
फिर क्यों तुमने अपने
दसवें अवतार की कहानी गढ़ी
और हमने सदियों से
तुम्हारे इंतजार में ये कहानी
सच मान कर पढ़ी ,
आओ अपने दसवें अवतार में
अपने सारे अवतारों के सार में
हमारे इंतज़ार को ख़त्म करो
सारे कंस – दुर्योधन और दुशासनों को
पल भर में भस्म करो ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 24 – 08 – 2019 )