कान्हा हम बिसरब नहिं…
कान्हा हम बिसरब नाहि,
(मैथिली गीत)
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कान्हा हम बिसरब नाहि ,
ऊधो, कान्हा हम बिसरब नाहि।
मधुर मिलन रस कान्हा देलक ,
ओकर मोल अनमोल ।
ब्रह्मज्ञान अपनहिं संगि राखु ,
दुख आओर बढ़ाऊ नाहि ।
हे ऊधो, दुख आओर बढ़ाऊ नाहि…
कान्हा हम बिसरब नाहि,
हे ऊधो! कान्हा हम बिसरब नाहि…
हम ब्रज केऽ गोपि मसृण हिअ ,
जानितहुं ई पीड़ा, रास नहि करितहुं ।
कान्हा हास परिहास चितचोर ,
प्रथम मिलापहिं,विरह दुख देलक ।
कहियो सेऽ हम भूलब नाहि ,
हे ऊधो! कहियो सेऽ हम बिसरब नाहि ।
कान्हा हम बिसरब नाहि ,
हे ऊधो! कान्हा हम बिसरब नाहि…
लौटू ऊधो कहु श्यामकेऽ,हालत अछि घनघोर ,
विरह पीड़ा मेऽ कहैत सभ गोपिन,
सन्देश देलक विष घोर।
तत्व ज्ञान हम किछहुँ न जानब,
सगुन रूप तजि निरगुन किया ध्यावब ,
कथमपि करब हम ई नाहि।
सखि हे ! कान्हा बिना हम जिअब नाहि…
कान्हा हम बिसरब नाहि ,
हे ऊधो! कान्हा हम बिसरब नाहि…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ९ /१२/२०२२
पौष, कृष्ण पक्ष,प्रतिपदा ,शुक्रवार
विक्रम संवत २०७९
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