कान्हा तोरी याद सताए
सांझ ढले तो मन अकुलाये
कान्हा तोरी याद सताये
कान्हा तोरी भोली सुरतिया
इन नैनन को ऐसे भाये
जैसे सुर का साधक कोई
साज़ देखि के जी ललचाये
आ जा बैरी पास हमारे
तोरे बिना अब रहा न जाए
कान्हा तोरी याद सताये
सांझ ढले तो मन अकुलाये
कान्हा तेरी याद सताये
भोली सुरतिया तिरछी नजरिया
अधरन पर है धरी बंसुरिया
अधरन पर जो धरी बंसुरिया
उसे बजावैं चार अंगुरिया
कान्हा तोरी बांस बंसुरिया
दिल मा मोरे हूक उठाये
कान्हा तोरी याद सताये
सांझ ढले तो मन अकुलाये
कान्हा तोरी याद सताये
रचयिता : शिवकुमार बिलगरामी