कान्हा जन्मोत्सव
प्रकाशक व्याख्यामे, एक राग विलाप,
कान्हा संस्कारक सुगन्ध अमर धारा ।
हमर भारतक भूमिसँ एहिक प्रेम अमर,
प्राकृत्य उत्सवमे जनम संस्कृति अलाप
बांसुरी के धुन गोकुल के गली में गूँजल,
नंदलाला के कदमसँ,महक उठल जहान।
माधवक मुरली,अछि जीबैत प्रेमक सार,
भारतक माटि दिव्य, पवित्र आओर महान ।
हर जन्मदिवस, हर पावन, एकलनव्व भाव,
एहि संस्कृति के करेजमे,अद्भुत इतिहास ।
प्रकाशक किरणमे जीवनक मार्ग खोजैत,
सुखक सार कान्हाक प्रेममे निहित भाव ।
ई भारत संस्कृति,जीनगिक अद्वितीय वरदान,
सभ हृदयमे बसे धरती मोरि,सभक प्रियभुमि ।
सभ डेग पर सत्यक अँजोर, खोजैत प्रिति हार
दुलरिक छाहमे, छि दिव्य,पावन आ महान।
——श्रीहर्ष