कानै कानै आइ दिल कानै(किसानक बाढसँ दर्द )
कानै कानै आइ दिल कानै
मानसपटल सुध-बुध दूय फाट बाटैय
काल्हि रहए अखन कतह, हरल भरल खलिहान
चहकत चिडियाक बोल सुनि कऽ, उठैत किसान
पायल बाजै छनछन, चुडीक खनखन गुलजार
कतह गेल हँसैत मुखड़ा,अनमोल धन मुस्कान
कानै कानै आइ दिल कानै
क्यारी कोखसँ उगैत, दुलरूआ केहेन अंजान
अखन-अखन ओ पाएर पसारै केर सिखैत रहैय,पत्ता-पत्ता जान
मायट- मेलल पानी गहरतर डुबइत,ओछल होइत नवजात
ह्रदय जाने बोझ कतैक,उलझन रायैत उलछाये
रातक नीद कतह तनमन मे,कखनो प्रण ऊड़ी न जाये
चौबीस कट्ठा खेतिहरक खेती,मनुरवा सदिखन टाका लअ जाये
कानै कानैय आय दिल कानै
फिरोसँ वैह दिन आएत ,सूरज फिरो छटाक बरसाइत
नित अभ्यास जिनगीक करब ,केओ आगू झुकी न पाऐब
मेहनतसँ नित प्रयासबल, हृदयसँ बीज उगाऐब
खिल उठैत खेतहर घर आगन,छोटका पाहुन पैयदा भऽ जाएत
मानलौ सबे बरिख खोये छि अप्पन के,
सोचू उगना( सिंहेश्वर,बागेस्वर ) कखनो नव दरख दिखायत
कानै कानै आय दिल कानै
मौलिक एवं स्वरचित
@श्रीहर्ष आचार्य