Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Jul 2022 · 3 min read

कानून में हाँफने की सजा( हास्य व्यंग)

कानून में हाँफने की सजा( हास्य व्यंग)
“”””””””””””””””””‘”””””””””””””””””””””””””
मैं हाँफ रहा था और मेरे सामने कुर्सी पर बैठा हुआ सरकारी अधिकारी मुझे देखे जा रहा था । फिर जब मैंने हाँफना बंद किया तो उसने कहा” मालूम है! आप लगातार सरकारी नियमों का उल्लंघन कर रहे थे”
मैंने पूछा “कौन सा सरकारी नियम था?”
वह बोला” आपकी सांसें अव्यवस्थित चल रही थीं। नियमानुसार किसी भी सार्वजनिक स्थान पर सांसों का व्यवस्थित होना बहुत आवश्यक है।”
मैंने कहा “यह भी कोई कानून की चीज है । हमारी सांसे हैं ,हम चाहे जैसे लें ।”
उसने मुंह बिचकाया और कहा “सांसें आपकी हैं, लेकिन व्यवस्थित करने का काम सरकार का है ।यह थोड़ी है कि आपकी सांसें हैं तो आप जब चाहे, जहां चाहे, जैसे चाहे लेते रहें।”
फिर उसने अलमारी खोली और उसमें से एक मोटी सी किताब निकाल कर धूल झाड़ी और सूची से देखकर एक पृष्ठ खोला और पढ़ना शुरू किया -“एतद् द्वारा सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है इस दिनांक के उपरांत अव्यवस्थित रूप से श्वास लेना तथा छोड़ना नियमानुसार अवैध माना जाएगा।”
मैंने बड़े आश्चर्य से कहा” यह कानून कब बन गया ,हमें तो पता ही नहीं चला ! ”
वह बोला” आपको कौन सा कानून है, जिसके बनने का पता चलता है। इस अलमारी को देख रहे हैं “उसने आलमारी की तरफ इशारा करते हुए बताया “इसमें जितनी किताबें हैं और जिन पर धूल चढ़ी हुई है ,वह सब आप से ही संबंधित कानूनों से भरी पड़ी हैं। आपको तो इसमें से किसी के बारे में भी नहीं पता। यह तो हम हैं, जो आपको बताते हैं कि आपने कब, किस जगह, कौन से कानून का उल्लंघन किया है और हम उसके लिए आप को कितनी सजा दिलवा सकते हैं। ”
मैंने कहा “ठीक है ,तो मैं जाता हूं।”
उसने हाथ पकड़ लिया “आप कैसे जा सकते हैं ?अब आए हैं और हमारे सामने आप उपस्थित हैं , तो फिर कुछ थोड़ा सा हमारे भी चाय पानी का इंतजाम करके जाइए ”
मैं बिखर गया। मैंने कहा” यह कौन से उल्टे- सीधे कानून तुमने बना रखे हैं। सांसें लेने पर जिस तरह का अंकुश तुमने लगाया है, हम उसको नहीं मानेंगे।”
वह बोला” कानून किसी के मानने, न मानने से नहीं बनता। आप मत मानिए लेकिन कानून आप को मानना पड़ेगा नहीं मानेंगे तो उसकी सजा है ।आपके ऊपर मुझे भी दस हजार रुपए जुर्माना डालने का अधिकार है।”
मेरी बात समझ में आई ।इतनी भारी, इतनी मोटी मोटी कानून की किताबों से जिन पर धूल भरी हुई है -यह अधिकारी के कार्यालय में शोभा क्यों बढ़ा रही है और यह भी समझ में आ गया यह आदमी इतना मोटा क्यों है। मैंने कहा “निश्चित रूप से तुम दिन भर बहुत खाते होगे ?”
उसने कहा” मेरे खाने से आपका क्या अभिप्राय है ।अगर आपने किसी ऐसे वैसे अर्थ में इस शब्द का प्रयोग किया है तो मैं आप को जेल भिजवा दूंगा ”
हमने चतुराई से काम लिया और कहा खाने से हमारा अभिप्राय केवल दाल रोटी चावल इत्यादि से ही है । आप वही ज्यादा खाते होंगे ”
वह बोला” आप का स्पष्टीकरण ठीक तो है ,लेकिन मुझे भी मालूम है कि आप क्या कहना चाहते हैं। खैर जब खाने की बात है ही, तो आप एक हजार रुपए मुझे खिला दीजिए मैं मामला रफा-दफा कर दूंगा।”
हमने ले- देकर मामला निपटाया और जब घर वापस आए, तो बुरी तरह हाँफ रहे थे । श्रीमती जी बोलीं ” हाँफ क्यों रहे हो, कहीं कोई नुकसान न हो जाए”
हमने कहा “नुकसान तो सरकारी दफ्तर में सरकारी अधिकारी के सामने जिसके पास एक किताब है और उस किताब पर धूल अटी पड़ी है -केवल उसके सामने हाँफने से नुकसान होता है ।वरना इस देश में कौन कितना हाँफ रहा है , क्या फर्क पड़ता है?”
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451

1 Like · 1 Comment · 314 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
समंदर
समंदर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
#DrArunKumarshastri
#DrArunKumarshastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
ईच्छा का त्याग -  राजू गजभिये
ईच्छा का त्याग - राजू गजभिये
Raju Gajbhiye
अश्रुऔ की धारा बह रही
अश्रुऔ की धारा बह रही
Harminder Kaur
एक बूढ़ा बरगद ही अकेला रहा गया है सफ़र में,
एक बूढ़ा बरगद ही अकेला रहा गया है सफ़र में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
हिंदी क्या है
हिंदी क्या है
Ravi Shukla
सागर से दूरी धरो,
सागर से दूरी धरो,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
* शक्ति स्वरूपा *
* शक्ति स्वरूपा *
surenderpal vaidya
रफ्ता रफ्ता हमने जीने की तलब हासिल की
रफ्ता रफ्ता हमने जीने की तलब हासिल की
कवि दीपक बवेजा
बर्फ़ के भीतर, अंगार-सा दहक रहा हूँ आजकल-
बर्फ़ के भीतर, अंगार-सा दहक रहा हूँ आजकल-
Shreedhar
हिंदू कट्टरवादिता भारतीय सभ्यता पर इस्लाम का प्रभाव है
हिंदू कट्टरवादिता भारतीय सभ्यता पर इस्लाम का प्रभाव है
Utkarsh Dubey “Kokil”
बिखरना
बिखरना
Dr.sima
समझदार व्यक्ति जब संबंध निभाना बंद कर दे
समझदार व्यक्ति जब संबंध निभाना बंद कर दे
शेखर सिंह
rain down abundantly.
rain down abundantly.
Monika Arora
हमसे तुम वजनदार हो तो क्या हुआ,
हमसे तुम वजनदार हो तो क्या हुआ,
Umender kumar
सुनो प्रियमणि!....
सुनो प्रियमणि!....
Santosh Soni
वचन सात फेरों का
वचन सात फेरों का
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
2575.पूर्णिका
2575.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
Madhuri mahakash
लोट के ना आएंगे हम
लोट के ना आएंगे हम
VINOD CHAUHAN
I find solace in silence, though it's accompanied by sadness
I find solace in silence, though it's accompanied by sadness
पूर्वार्थ
अब के मौसम न खिलाएगा फूल
अब के मौसम न खिलाएगा फूल
Shweta Soni
हवस दिमाग से पैदा होती है और शरीर के रास्ते बाहर निकलती है द
हवस दिमाग से पैदा होती है और शरीर के रास्ते बाहर निकलती है द
Rj Anand Prajapati
*दादी बाबा पोता पोती, मिलकर घर कहलाता है (हिंदी गजल)*
*दादी बाबा पोता पोती, मिलकर घर कहलाता है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
" सुप्रभात "
Yogendra Chaturwedi
"" *इबादत ए पत्थर* ""
सुनीलानंद महंत
"नींद की तलाश"
Pushpraj Anant
, गुज़रा इक ज़माना
, गुज़रा इक ज़माना
Surinder blackpen
😢आतंकी हमला😢
😢आतंकी हमला😢
*प्रणय प्रभात*
जब किनारे दिखाई देते हैं !
जब किनारे दिखाई देते हैं !
Shyam Vashishtha 'शाहिद'
Loading...