कानन मे उदास मयूरी
कानन मे उदास मयूरी
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हसरतें रह गई अधूरी हैँ,
कोशिशें हद पार पुरी हैं।
बात पलभर में बिगड़ गई,
अभी तक मन में दूरी है।
मुख शर्म से लाल हुआ है,
चेहरे का रंग भी संदूरी है।
जान आफत में फंसी हुई,
बेचारा मुर्गा पका तंदूरी है।
मनसीरत अहेरी क्या करे,
कानन मे उदास मयूरी है।
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सुखविंद्र सिंह मानसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)