कातिल अदा
हमे फख्र है कि हमे नज़रै चुराना नही आता!
वो इस कद्र बेतकल्लुफ कि भरी महफिल,
उन्हे नज़रे नही मिलाने का सबक सही आता!!
है यह कैसी बेगैरत,बेमुरब्बत उनकी जात,
इस बेशर्मी को निबाहने का सलीका नही जाता!!
कहते है लोग यही तो कातिल अदा है उनकी,
लूट कर सारा जहा उनसे उफ कहा नही जाता!!
वैसे समाज से मागते है दर्जा वो बराबरी का,
पर बात बराबरी की करते, यह सहा नही जाता!!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट 202 नीरव निकुजं
सिकंदरा,आगरा-282007
मो-9412443093