काठ का है जी-ओंम प्रकाश नौटियाल
हम तो आम जनता हैं
शरीर काठ का है जी
दर्द तनिक नहीं होता
गुजरती ठाठ से है जी
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उन्हें सुरक्षा चाहिए
जिनका सदन सोने का
नींद उनकी उडती है
जिन्हे डर है खोने का
वह बोतल से पीते हैं
यहाँ जल घाट का है जी
हम तो आम जनता हैं
शरीर काठ का है जी
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बुढापे में भी वह युवा
मुँह पर क्रीम की पर्तें
बड़ा दमदार हाजमा
वह क्या क्या नहीं चरते
पर अपना तो बचपन भी
शुरू से साठ का है जी
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उनका धँधा ऐसा है
बस चाँदी बरसती है
हमारी आय देखकर
रोटी भी तरसती है
श्रीमान का पहाड़ा भी
दो दुनी आठ का है जी
हम तो आम जनता हैं
शरीर काठ का है जी
-ओंम प्रकाश नौटियाल, बड़ौदा , मोबा.9427345810
(पूर्व प्रकाशित- सर्वाधिकार सुरक्षित )