काट नही पेड लगा
वो देखो कोई,पेड काटता,
उसे रोको, टोको,
वह जो पेड काटता,
कहो उससे, औरों के लिए ना सही,
अपने लिए ही सही,
क्यों,पर्यावरण का खोते हो सन्तुलन,
बिना स्वच्छ वायु के
धडकना बन्द कर देती है धडकन,
तब क्या करोगे, उस सुखी धरा का,
जब जीवन ही होगा कष्ट भरा,
ऐ,धूर्त जन,
सोच तू होकर एकाग्र मन,
खुश्क हो जायेगी जब यह वसुन्धरा,
अन्न जल जब न उपजेगा,
क्या खायेंगे,हम सोच जरा ।
वृक्ष,लगा कर तू परिणाम देख,
हानि एक भी नहीं,और लाभ अनेक,
गिनवाता हूँ,एक एक,
सामाजिक,आर्थिक,और पशुआहार,
मानव को है ये निशुल्क,
प्रकृति प्रदत्त उपहार,
इसको मत खोना तू,
साध नहीं हित अपना तू,
पुर्वजों का भी है कहना यह,
पेड लगाओ तुम हजार,
कुछ हों जलवायु के हक में,
कुछ पशुचारे के लक्ष के,
कुछ मे हो स्वयं का आहार।
मनुस्य मन जब स्वस्थ होगा,
स्वस्थ मन से चिन्तन होगा,
निष्पक्ष वह चिन्तन होगा,
स्वस्थ चिन्तन से होगा उद्धार,
मानव जाति पर होगा,तब तेरा भी,
कल्याण मयी उपकार,
सोच जरा कर गहन विचार ।