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9 Apr 2018 · 1 min read

कागज़ के फूल

नाम व व्यवसाय के साथ
“समाज सेवक” की
नेमप्लेट से सुशोभित
घर के बाहर की दीवार

कागज़ के फूलों से सजा
फूलदान,
अभिमान से
सिर ऊँचा किये सजी हैं
गगनचुंबी इमारतों की तस्वीरें

वहीं पास ही
दीवारों से बेबस ताकता
उगता सूरज
जैसे लाल लाल पँख
काट दियें हो किसी ने,
नीला आसमान, बहती नदी,
मानों सब कुछ कैद में है,,

चेहरे की चमक का
गुणगान करते
रेशमी परदों पर
एक भी शिकन नहीं है
जीवन की,

भव्य सोफा
गर्व से सीना चौड़ा करती
सेंटर में पड़ी मेज

करीने से सजी
चाय नाश्ते की ट्रे

चुस्कियों के साथ
शुरू हुआ
बातों का सिलसिला

कुछ चंदा चाहिये था
गरीब बच्चों को
मुफ़्त में किताबें देने को,

हँसकर कर बोले वो
ये इमारतें देख रहीं हैं न आप
ईंटें ढोयीं हैं यहाँ उन्होंने
रोटी चाहिए होती है उन्हें
पेट की आग नहीं बुझा पाएंगी
आपकी ये किताबें

और यदि मैं मान भी लूँ
कि
बुझ सकती है ये आग
तो कौन करेगा
इन गगनचुंबी इमारतों में
भारत निर्माण

मेरे वक़्त की
कीमत समझिये और
हो सके तो अपने भी,,

मैं उठी और मुस्कराई
देखकर कागज़ के फूलों को

सच ही तो है
कभी नहीं बिखेर सकते
सुगंध
ये कागज़ के फूल

और अगर
ख़ुशबू आ भी जाये तो
अधूरा ही रह जायेगा
इनके भारत का
निर्माण,,,

Language: Hindi
393 Views
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