कागज़ों के मकाँ को जलाते नही
दिल में हमको कभी भी बसाते नही
दिल वो हमसे कभी भी लगाते नही।
घर वो अपने कभी भी बुलाते नही
देख हमको कभी मुस्कुराते नही।
होश मेरा हमेशा उड़ाते रहे
सामने देख नज़रे झुकाते नही।
ज़ख्म पाये बहुत ज़िन्दगी से हमी
दर्द अपना किसी से बताते नही।
भूल बैठे हैं वादा किया था कभी
वो भी वादा किसी से निभाते नही।
आशियाँ सब बनाये हैं कागज़ पे ही
कागज़ों के मकाँ को जलाते नही।
बेवफ़ा को कभी भूल पाये न हम
दिल में चाहत कभी भी जगाते नही।
-आकिब जावेद