काग़ज़ी रिश्ते
हमने तो काग़ज़ की नाव से ही, जीवन संघर्ष को सिखा था।
याद है बचपन मे सबसे पहले, काग़ज़ पर हाँथी दिखा था।।
फिर लिख पढ़ काग़ज़ से ही, हमने दुनियादारी देख लिया।
कर काग़ज़ नोटों का लेन देन, यूँ अपना पराया भेद लिया।।
तब लेकर काग़ज़ का सर्टिफिकेट, कामयाब हम आज़ हुए।
पर भाग दौड़ में जाने कब, काग़ज़ी रिश्ते के मोहताज़ हुए।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १३/०१/२०२०)