कागज और कलम
कागज पर चलती कलम का
वो मद्धम मद्धम
साँसो का सा स्वर. …. ..
वो रौशनाई की उभरती
एक एक लहर. ……
जीवंत करती जाती है
निर्जीव पन्ने को
पहर दर पहर………
अपनी ही लिखावट पर
हौले हौले से
उँगलियाँ फिराना……
और महसूसना
हृदय से जने भावों को….
उँगली की पोर भी
हो उठती है विभोर…..
जब शब्दों के अन्तस के
स्पन्दन का शोर..
तरल हो जीवित कर देता
कागज का ओर छोर
तब कागज ,
महज कागज नहीं रहता
भावनाओं का प्रतिरूप हो
वो या तो कहानी हो जाता है
या फिर कविता हो कर,
नहीं तो प्रिय की
पाती बन कर..
सृजित करता है रोशनी
बाती बन कर.. ….
कभी शब्दों की सुगंध से
महकाता है समाँ….
कागज पर चलती कलम का
मद्धम मद्धम साँसों का सा स्वर
दरअसल कागज में धड़कन रहा है भर!!