कागज़ ए जिंदगी
शीर्षक – कागज ए जिंदगी
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सच तो कागज ए जिंदगी होती हैं।
हम तुम प्रेम चाहत आकर्षण रखते हैं।
बस न हम संग साथ निभाने वाले होते हैं।
कागज ए जिंदगी का मंथन हम जानते हैं।
सही और सोच हमारी अपनी मन से होती हैं।
मन भावों में रिश्ते नाते सच तो हम होते हैं।
न कि कागज ए ज़िंदगी को सहयोग करते हैं।
आजकल हम सभी अपने स्वार्थ रखते हैं।
मन के साथ-साथ कागज ए ज़िंदगी सोच है।
बस एक हस्ताक्षर कागज ए जिंदगी होती हैं।
आओ हम सच और सोच हमारी बदलते हैं।
बस निःस्वार्थ भाव हम कागज ए जिंदगी कहते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र