कागज़ ए जिंदगी
शीर्षक – कागज ए जिंदगी
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आज तो कागज ए जिंदगी रहती हैं।
न तुम न हम चाहत आकर्षण रखते हैं।
बस हम सभी साथ निभाने वाले कहां होते हैं।
कागज ए जिंदगी का सच हम कहते हैं।
सोच हमारी अपने अपने मन से रहती हैं।
हमारे भावों में रिश्ते मन के सच तो कहते हैं।
बस कागज ए ज़िंदगी को सहयोग करते हैं।
आज हम सभी अपने दिल में स्वार्थ रखते हैं।
मस्त मस्ती के साथ कागज ए ज़िंदगी सोचते है।
हां एक कागज़ से कागज ए जिंदगी बनाते हैं।
न हम सच और सोच अपनी स्वार्थ कहते हैं।
हां हम निःस्वार्थ भाव कागज ए जिंदगी बदलते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र