काका हाथरसी
समाज की खामियों को पैने व्यंग्य में
कसते हुए काका हाथरसी अपनी बात को मुस्कुराते हुए कह जाते है समाज और राजनीति पर व्यंग्य बाण भी चलाते है । हास्य सम्राट और पदमश्री से विभूषित काका ने हास्य की धारा को अपने अन्त समय में भी बरकरार रखा । जब उनकी अन्तिम यात्रा ऊँट गाड़ी पर निकल रही थी तब भी श्मशान में काका जी ने अपनी हास्य फुलझड़ियों से जनसमुदाय को गुदगुदाया । यह साहस कविवर में ही था गमगीन माहौल में हास्य की धारा को प्रवाहित करने का ।
अग्रवार समाज के एक कार्यक्रम मंचन में काका का किरदार निभाने वाले श्री प्रभुलाल गर्ग अगले दिन से काका नाम से जाने जाने लगे । काकाजी की उक्त दोनों रचनाऐं गुदगुदी उत्पन्न करते हुए समाज पर तंज करती है “पुलिस महिमा “प्रसंग से हास्य पूरित व्यंग्य देखिए —
पड़ा-पड़ा क्या कर रहा, रे मूरख नादान
दर्पण रख कर सामने, निज स्वरूप पहचान