कांतिपति का चुनाव-रथ
चल रहा था
चौदहवीं लोकसभा का चुनाव
नेताओं का आर्ग्युमेंट
मेरी समझ में नहीं आया
अतः अपना चुनाव-रथ
आगे बढ़ाया
मैं पहुँचा उस नेता के पास
जो अपने विपक्षियों को
चटा रहे थे धूल
चुनाव चिह्न था फूल
मैंने कहा― नेताजी
आप देश में शासन कर रहे जंजीर की
एक कड़ी हैं
आप बड़े हैं
आपकी पार्टी बड़ी है
सर पर चुनाव है तो
जनता को गु़डफील करा रहे हैं
पिछले चुनाव में
एक करोड़ रोजगार का वादा किया था
आज अब उन बेरोजगारों को
विपक्ष की देन बतला रहे हैं
और तो और
आपके अनुसार
आपके बेरोजगार बच्चे हैं
कुछ माँ की गोद में खेल रहे हैं
कुछ स्कूल जा रहे हैं
लेकिन आदरणीय
हम समझ नहीं पा रहे हैं
आप जब बड़े बेरोजगारों को
अपना नहीं बताते हैं
तो अपने इन छोटे
तथाकथित बेरोजगार बच्चों को
विपक्ष द्वारा खोले गए
स्कूलों में क्यों पढ़ाते हैं
विपक्ष द्वारा बनाई कंपनियों की
उर्जा, दवा, कपड़ा व अन्य
सारे संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं
फिर भी अकड़ रहे हैं
अगर आप
विपक्ष द्वारा दी गई समस्याओं को
ढो नहीं सकते
तो उनके द्वारा दी गई सुविधाओं से
मुख मोड़ लीजिए अथवा
आज के बेरोजगारों को
रोटी देना आपकी समस्या नहीं है
कहना छोड़ दीजिए
मेरा ऐसा कहना
उनको तनिक न भाया
मैं भी अपना चुनाव-रथ
आगे बढ़ाया
आगे बढ़ा तो देखा
एक महोदया
बेटा और बेटी के साथ
जनमानस पर छा रही थीं
पंजा हिला रही थीं
मैंने पूछा―
मैम, आप विदेशी मूल की होते हुए भी
भारतीय जनमानस पर छा रही हैं
अपने को सच्चा हिंदुस्तानी
बता रही हैं
जबकि आपका प्रबल प्रतिद्वंदी
विदेशी मूल का मुद्दा उठा रहा है
आपको कैसे भा रहा है
तो बोलीं―
अपने फूल के मूल को भूल कर
जो मुझे वापस करना चाहते हैं
वही वापस जाएँगे
चुनाव परिणाम आने दीजिए
वे अपने फूल को कीचड़ में पाएँगे
वहीं बगल में एक नेता
धर्म को मिटाने हेतु
ठोक रहे थे ताल
झंडा लिए लाल
मैंने कहा― महाशय
आप समाजवाद लाने का
राग अलापते हैं
गीत गाते हैं
जबकि आप की पार्टी में भी
अमीर गरीब दोनों हैं
कुछ भूखे रहते हैं
कुछ छककर खाते हैं
और तो और
आप धर्मों पर
बड़े ही व्यंग्य मारते हैं
लेक्चर झाड़ते हैं
जबकि इन्हीं धर्मों को मानकर
आज मानवता जीवित है
क्योंकि अलौकिक शक्ति का आभास
इंसान को अनीति करने से रोकता है
अधम और नीच को
धर्म टोकता है
महाशय
आप जब किसी से नहीं डरेंगे
तो क्या गारंटी है कि अनीति नहीं करेंगे
तो बोले―
गारंटी तो अब धर्म वालों में भी नहीं रहा
इसे सहज ही मान लीजिए
धर्म के ठेकेदारों को पहचान लीजिए
ये धर्म प्रचारक
अपना उद्देश्य भूले हैं
और मनुष्य को
पुनः जानवर बनाने पर तुले हैं
रही हमारे दल में अमीर और गरीब की बात
तो हम नंगा होकर भी किसी को ढाँप नहीं सकते
हमारी भी कुछ लाचारी है
इसलिए जिन को नंगा करने पर
सबको पर्दा मिल सके
ऐसों की धोती खोलने की तैयारी है
उनका जवाब हमें चौकाया
अपना चुनाव-रथ आगे बढ़ाया
आगे बढ़ने पर मिले जो साथी
उनका चुनाव चिह्न था हाथी
मैंने कहा आप की मुखिया
जब भी जुबान खोलती हैं
हमेशा सवर्णों के खिलाफ बोलती हैं―
सबने हमारे समाज का मखौल उड़ाया है
जबकि उनको निकटतम सहयोगी
सवर्ण ही भाया है
किसी सवर्ण के सहयोग से ही
डॉ भीमराव अंबेडकर
अपना नाम पाए थे
उन के ही बल
बाबू जगजीवन राम भी
मंत्री बन कर आए थे
माया झूठ बोल रही हैं
महा ठगिनी है
उन्होंने आमजन को छला है
जरा बताइए ना उनके सीने पर
किस-किस ने मूंग दला है
दावा करती हैं कि
दलितों के लिए जी रही हैं
पल रही हैं
जबकि कुछ का कहना है कि
वह दलितों का वोटर बेचकर
फूल रही हैं, फल रही हैं
नेता छूट भैया थे
कुछ बोल नहीं पाए
हम अपना चुनाव-रथ आगे बढ़ाए
और आगे अब जिन से मिले
वह भूतपूर्व टीचर थे
पहने थे खादी
पार्टी का नाम था― समाजवादी
मैंने कहा― महाशय
आप राज्य से केंद्र तक
सरकार में रहे हैं
चलाए हैं
लेकिन समाजवाद की चर्चा
न किए हैं न लाए हैं
चुनाव चिह्न है साइकिल
अपनाए हुए हैं कार
कैसे लाएगी समाजवाद
आपकी सरकार
तो बोले―
सिर्फ पार्टी का नाम है समाजवादी
समाजवाद का न ही मुद्दा है
और न ही लाने का ख्याल है
भीतर से क्या हैं
हम जानते हैं
ऊपर से सिर्फ समाजवाद की खाल है
आगे मिले जो नेता
पत्नी को गद्दी पर बिठाकर
चारे में नाक डूबो सुड़क रहे थे
लाठी और लालटेन हाथ में लिए
दुश्मनों को गुड़क रहे थे
उनसे जब पूछा―
भाई साहब
चल रहे चुनाव के संबंध में कुछ बताएंगे
तो बोले― भक्क बुड़बक
एक दिन केंद्र में हमहुँओं सरकार बनाएंगे
इसके बाद किसी से न ही कुछ पूछा
और न ही टोका
संतुलन बिगड़ रहा था
अपना चुनाव-रथ रोका।