कांटे बनकर जो
काँटे बनकर सीने मे चुभे
अपने ही चमन के फूल थे वो
अब नाम से भी जो जलते हैं
इस दिल के कभी हुजूर थे वो
हर सितम सहे और हँसते रहे
लब से उफ तलक नहीं निकली
अपने ही सर इल्जाम लगा
अपने अपने तो वसूल थे वो
लाख वादे याद दिलाये पर
सेहरे मे हँसकर जा बैठे
हाँथों मे मेहंदी रचाने को
देखो कितना मजबूर थे वो
नाँदा पागल या दीवानें
जो भी थे क्या खूब थे हम
हर आह मे जिसका नाम लिया
दिल ही दिल में बे कसूर हैं वो
(स्वरचित मौलिक रचना)
M.Tiwari”Ayan”