कांटें हों कैक्टस के
कांटें हों कैक्टस के
या हो टूटे कांच के टुकड़े
चुभन इनकी
है बर्दाश्त के काबिल
ज़ख़्म आपकी बेवफ़ाई का
नाक़ाबिले बरदाश्त है
………. अतुल “कृष्ण”
कांटें हों कैक्टस के
या हो टूटे कांच के टुकड़े
चुभन इनकी
है बर्दाश्त के काबिल
ज़ख़्म आपकी बेवफ़ाई का
नाक़ाबिले बरदाश्त है
………. अतुल “कृष्ण”