काँ से काँ तक….
वक्त ले आया काँ से काँ तक
डराती है अब अपनी छाँ तक
कैसे यकीं आए नातों पर,
बदल गए सब सर से पाँ तक
घुमाऊँ नजर जो याँ से वाँ तक
नजारा देख डर जाती जाँ तक
औरों पर विश्वास करें क्या
बदल गयी जब अपनी माँ तक
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद