काँच जड़ा है अपना घर
काँच जड़ा है अपना घर
सारे लोग बने पत्थर
कतरा-कतरा देख ज़रा
मेरी आँखों में सागर
ग़म की यूँ बरसात हुई
भीग उठा हर इक मंज़र
इश्क़ ने इतने ज़ख़्म दिए
रूह भी छलनी है अक्सर
साहेब ग़म की मत पूछो
पीता है लहू जी भर
काँच जड़ा है अपना घर
सारे लोग बने पत्थर
कतरा-कतरा देख ज़रा
मेरी आँखों में सागर
ग़म की यूँ बरसात हुई
भीग उठा हर इक मंज़र
इश्क़ ने इतने ज़ख़्म दिए
रूह भी छलनी है अक्सर
साहेब ग़म की मत पूछो
पीता है लहू जी भर