क़ैद हो तुम
क्यों ढुंढते हो खुद को यहां वहां तुम,
कैदी हो तुम, मेरी यादों में, मेरे ख्वाबों में,
मेरी चाहतों में, दिल की राहतों में।
मेरी खामोशियों में, मेरे ख्वाहिशों में,
मेरे दुआओं में, मेरी इबादतों में।
मेरे नज़र में,हर एक सफ़र में,
मेरी हर सांस में, दिल की हर आश में।
मेरे हंसने में, मेरे रोने में,
चुपके चुपके यादों के खोने में।
छुटना चाहो भी छुट ना पाओगे,
अटूट बंधन को ना तोड़ पाओगे।
रिहाई भी होगी उस दिन तुम्हारी,
जिस दिन दिल से धड़कन जुदा होगी हमारी।