क़ैद में है बुलबुल
तुम्हारा भी कोई वजूद है
आखिर कैसे भुला देती हो!
पिंजरे की सुरक्षा के लिए
खुला आकाश गंवा देती हो!!
हम लोग तो मारे घुटन के
मालूम नहीं क्या कर बैठते!
तुम लोग घर में हंसती हुई
पूरी उम्र बीता देती हो!!
Shekhar Chandra Mitra
तुम्हारा भी कोई वजूद है
आखिर कैसे भुला देती हो!
पिंजरे की सुरक्षा के लिए
खुला आकाश गंवा देती हो!!
हम लोग तो मारे घुटन के
मालूम नहीं क्या कर बैठते!
तुम लोग घर में हंसती हुई
पूरी उम्र बीता देती हो!!
Shekhar Chandra Mitra