” क़ैदी विचाराधीन हूँ “
उदासियों का शहर है
तड़पन भरा एक शीन हूँ
हालात घर के सोचता
बैठा हुआ ग़मगीन हूँ
—– क़ैदी विचाराधीन हूँ
माहौल है ज़ुदा-ज़ुदा
मैं ख़ुद में ही तल्लीन हूँ
लोग, मैं,कविता मेरी
एक दो से हुआ तीन हूँ
—– क़ैदी विचाराधीन हूँ
बिगड़े हुए हालात का
नमूना मैं बेहतरीन हूँ
पेशी पर आते-जाते
कौड़ी का हुआ तीन हूँ
—– क़ैदी विचाराधीन हूँ
फड़फड़ा के टूट चुके
परों को रहा बीन हूँ
हैं बंदिशों की बेड़ियां
मैं ज़ेल के अधीन हूँ
—– क़ैदी विचाराधीन हूँ
राह घर की देखता
गिन रहा दिन हूँ
आंसूओं से तर-बतर
हस्ती मैं पराधीन हूँ
—– क़ैदी विचाराधीन हूँ
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)