क़िस्सा जज़्बात का है
भीनी भीनी
रातरानी महकती रही
रात भर …
सिरहाने
मोगरे की कलियाँ
बिखेरती रहीं खूशबू…
झिर झिर कर
आती चाँदनी
गुनगुनाती रही
रात भर….
लम्हा लम्हा
जुड़ता रहा…
पल पल
संवरती रही मैं….
पंख लगे जीस्त नूं
पाखी उड़ने लगी मैं….
कतरा कतरा टूट कर
फिर जुड़ने लगी मैं. .
रात बहती रही
मुस्कुराता रहा तू…
रातरानी महकती रही
दूर जाता रहा तू…
सहर है तन्हा हूं
किस्सा जज़्बात का है….
फिर सजेगी यादों की महफिल
इंतज़ार रात का है….
नम्रता सरन “सोना”