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18 Feb 2022 · 1 min read

क़लम के सिपाही

कुछ ऐसे मंज़र आज-कल सामने हैं
थाम कर कलम हम मोर्चे पर तने हैं…
‌ (१)
देश की बागडोर जिन्हें दी गई थी
हाय, उन्हीं के हाथ लहू में सने हैं…
(२)
चाहे जो काम कोई करा ले इनसे
गुलामी के लिए ही ये लोग बने हैं…
(३)
तेज़ाबी बारिश की आशंका जिनसे
ज़रा देखो वे बादल कितने घने हैं…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
#अवामीशायरी #बहुजनशायर
#इंकलाबीशायरी #चुनावीकविता

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