क़लम के सिपाही
कुछ ऐसे मंज़र आज-कल सामने हैं
थाम कर कलम हम मोर्चे पर तने हैं…
(१)
देश की बागडोर जिन्हें दी गई थी
हाय, उन्हीं के हाथ लहू में सने हैं…
(२)
चाहे जो काम कोई करा ले इनसे
गुलामी के लिए ही ये लोग बने हैं…
(३)
तेज़ाबी बारिश की आशंका जिनसे
ज़रा देखो वे बादल कितने घने हैं…
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Shekhar Chandra Mitra
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