क़यामत
काश ये क़यामत थोड़ा पहले आती,
ख़ुदा की कसम कोई बात बन जाती,
अपनी आँखों में होती चमक सितारों की,
ज़िन्दगी किस कदर बदल जाती ।
यूँही फिरते रहे अंधेरों में,
बेसबब, बेपरवाह यूँही एकाकी,
दीप जलाने का होश तब आया,
जब दीपक से रूठ गई बाती ।
मेरे शहर में नहीं रिवाज़ माना लिखने का,
लबों से भी ये बात कही नहीं जाती,
तुम्हें पता था जब हालातों का,
तुम ही लिख देते कोई पाती ।
तुम तो जाते हो बदलकर रिश्ते,
कैसे ढूंढें कोई नया साकी,
इस तरह जीने से तो अच्छा था,
जान कमबख्त ये निकल जाती ।